अनुक्रमणिका
- छठ पूजा की उत्पत्ति: समय के साथ यात्रा
- छठी मइया: छठ पूजा के पीछे की दिव्य शक्ति
- छठ पूजा का महत्व: सूर्य पूजा से परे
- छठ पूजा 2024 की तैयारी: आवश्यक टिप्स और दिशानिर्देश
- निष्कर्ष
छठ पूजा की उत्पत्ति: समय के साथ यात्रा
छठ पूजा के दिन सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। उन्हें मां कात्यायनी के रूप में भी पूजा जाता है और उनकी पूजा नवरात्रों में षष्ठी तिथि के दिन होती है। कहा जाता है की छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं तथा निसंतान लोगों को संतान प्राप्ति में मदद करती हैं।
छठ पूजा की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है कि एक समय जब राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने महर्षि कश्यप से कुछ उपाय मांगा। महर्षि कश्यप ने उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी जिसके कारण राजा प्रियव्रत की पत्नी रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। परंतु वह संतान मृत पैदा हुई। उस समय एक विमान आकाश से उतरता है जिसमें कात्यायनी मां विराजमान होती हैं। जब राजा प्रियव्रत माता से प्रार्थना करते हैं तो वे राजा पर अपनी कृपा बरसाती हैं और उस बालक में जान डाल देती हैं।
छठ पूजा का संबंध महाभारत से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि द्रौपदी सूर्य देव की बड़ी भक्त थी तथा जब पांडव युद्ध लड़ने गए थे तो उसने सूर्य देव से प्रार्थना की थी और इस पूजा को छठ पूजा कहा जाता है। साथ ही साथ सूर्यपुत्र कर्ण भी भगवान सूर्य की नियमित रूप से पूजा करते थे। उनके लिए उपवास रखते थे तथा भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य देव की कर्ण पर बहुत कृपा रहती थी तथा आजकल लोग कर्ण द्वारा किए गए नियमित पूजा अनुष्ठानों को छठ पूजा कहते हैं।
छठी मइया: छठ पूजा के पीछे की दिव्य शक्ति
जैसा कि हमने पहले भी बताया छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री मानी जाती हैं। षष्ठी तिथि पर नवरात्रों में इनकी पूजा की जाती है। मां कात्यायनी के रूप में इन्हें पूजा जाता है। ये संतानों की रक्षा करती हैं।
साथ ही साथ छठी मैया को सूर्य देवता की बहन भी माना जाता है। इसीलिए छठ पूजा के दौरान छठी मैया के साथ-साथ सूर्य देवता को भी अर्घ्य दिया जाता है। कहा जाता है कि छठी मैया सूर्य देव की बहन है और उनकी कृपा से भक्तों को सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा का महत्व: सूर्य पूजा से परे
छठ पूजा केवल सूर्य को अर्घ्य देने तक सीमित नहीं है। इसका एक गहरा अर्थ भी है। यह जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। सूर्य देव केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं है। वह जीवन के पोषणकरता भी है और इस पूजा के दौरान हम उन्हें प्रसन्न करके प्रकाश ऊर्जा और जीवन को बनाए रखने की शक्ति के लिए धन्यवाद करते हैं। यह पूजा प्रकृति और मनुष्य को जोड़ती है तथा इसके दौरान केवल आराधना नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू के लिए प्रकृति को धन्यवाद किया जाता है।
यह पर्व प्रकृति के साथ-साथ सामंजस्य और सम्मान का प्रतीक भी है। यह पूजा प्रकृति की शुद्धता और संतुलन को बनाए रखने की प्रेरणा देती है। हमें जलवायु संरक्षण की सीख देती है। इसके अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार की दुषित सामग्री या प्रदूषण को बढ़ावा नहीं दिया जाता। अतः स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश फैलाना भी छठ पूजा का एक उद्देश्य है।
छठ पूजा 2024 की तैयारी: आवश्यक टिप्स और दिशानिर्देश
छठ पूजा की तैयारी के लिए कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि इसमें 36 घंटे का निर्जला उपवास करना होता है इसलिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होना सबसे ज्यादा जरूरी है।
उसके बाद छठ पूजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है घाट पर सूर्य देवता को अर्घ्य देना, तो इसके लिए आपको एक स्वच्छ घाट की आवश्यकता होती है। कोई शांत और प्रदूषण से मुक्त स्थान का चयन करना ठीक रहता है। जहां पर जल स्रोत हो, जैसे कि घर के आसपास की नदी या कोई तालाब। यदि ऐसा ना हो तो घर में एक बर्तन या कुंड में जल रखकर भी पूजा की जा सकती है। घाट को केले के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है। छठ पूजा के लिए नारियल, गन्ना, ठेकुआ आदि सामग्रियां आवश्यक होती हैं। सूर्य को सुबह और संध्या में अर्घ्य देना होता है। इसलिए समय के अनुसार सभी तैयारी पहले से कर लेनी चाहिए। पूरी पूजा के दौरान मन में किसी प्रकार की इर्ष्या या किसी के प्रति गलत भावना नहीं रखनी चाहिए तथा पूरी निष्ठा के साथ व्रत संपूर्ण करना चाहिए।
निष्कर्ष
छठ पूजा की उत्पत्ति, महत्व और इसके पीछे की पौराणिक कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के बीच के गहरे संबंधों को प्रकट करने वाला त्योहार है। यह पूजा सूर्य देवता और छठी मैया के प्रति आभार व्यक्त करने का एक माध्यम है, जो जीवन, ऊर्जा और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठान न केवल हमें भक्ति और आस्था का महत्व सिखाते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और सामूहिक समर्पण की भावना का भी संदेश देते हैं। यह पर्व हमें जीवन के प्रति कृतज्ञता और संयम का महत्व समझाता है, और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने की प्रेरणा देता है।
आने वाले समय में भी, छठ पूजा का यही उद्देश्य रहेगा कि हम अपनी परंपराओं के साथ-साथ प्रकृति का सम्मान करते हुए एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन की कामना करें।
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